प्रतिबिंब

किसीके सामने बड़ा, तो किसीके सामने छोटा
किसीके सामने दुबला, तो किसीके सामने मोटा
किसीके सामने लम्बा, तो किसीके सामने नाटा
किसीके सामने अच्छा, तो किसीके सामने बुरा
तरस गया हूँ में
अपनी असली सूरत के लिए
ढूंढ रहा हूँ वोह आइना
जो दिखा दे मेरी असली सूरत मुझे
जब कभीभी आईने पर डाली रौशनी
और धुंधला गयी सूरत मेरी
गुस्से से तोड़ दिया वोह आइना
चकना चूर हो गयी सूरत मेरी
तनहा महसूस कर रहा था
कोस रहा था हर आईने को
अचानक दिल की गहराई से
जानी पेहचानी सी आवाज़ आई
'बेवक़ूफ़, गर देखनी है तुझे असली सूरत तेरी
डाल रौशनी अपने आप पर तू
क्यूँ बेवजह कोस रहा है आईने को?
हर किसीका भी तो आइना है तू!
गर देखनी है तुझे असली सूरत तेरी
ठीक कर पहले सीरत को तेरी
दिखा साफ़ सूरत सबकी सबको
तब देख पायेगा तू असली सूरत तेरी'
- Musten Jiruwala
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